वैश्विक महामंदी से हो सकता है सामना

2024 की कामना - वैश्विक महामंदी से हो सकता है सामना

वैश्विक महामंदी से हो सकता है सामना
दुनियां में वर्ष 2024 में महामंदी छाने की संभावनां
दुनियां की सभी अर्थव्यवस्थाओं में अगले साल भारी नरमी देखने को मिल सकती है, जो महामंदी का रूप ले सकती है - एडवोकेट किशन भावनानीं गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर करीब करीब हर देश कोविड महामारी के जबरदस्त झटका से उनकी अर्थव्यवस्थाओं के बुरी तरह से चपेट में आने से अभी तक पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं कि फिर यूक्रेन-रूस युद्ध, अनेक देशों में आपसी बिगड़ते रिश्ते- मसलन भारत-कनाडा, अमेरिका रूस चीन, जलवायु परिवर्तन केभयंकर आघात जो अनेक देशों में बाढ़, भूस्खलन, आग जैसे अनेक घटनाओं से एक बार फिर दुनियां की अर्थव्यवस्थाओं के पीछे धकेलने का क्रम जारी है। जिस तरह के आंकड़े वर्तमान में आ रहे हैं उनमें अगले साल व्यापार में भारी नरमी के चलते इसका रूप महामंदी के तौर पर बढ़ जाए इसके लिए इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिस तरह अनेक देशों की थोक चिल्लर महंगाई दर बढ़ रही है, इसके उपायों में लगातार ब्याज दरों को बढ़ाया जा रहा है, जिससे महंगाई कम होते दिखी भी लेकिन यह आंकड़ों का खेल है,इसमें जमीनी स्तर पर अधिक फर्क नहीं पड़ा है। परंतु इसके उलट भारत की स्थिति अपेक्षाकृत सुदृढ़ है, परंतु फिर भी जमीनी स्तरपर देखा जाए तो भारत में भी खुदरा मुद्रा स्थिति दर, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक, महंगाई दर सूचकांक पिछले महीनों से करीब दुगना हो रहा है। बाकी दुनिया: फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड की तरह ही स्विट्जरलैंड के स्विस नेशनल बैंक ने भी अब ब्याज दरों को बढ़ाने से दूरी बना ली है। कोशिश यही है कि महंगाई पर लगाम लगाई जाए, लेकिन ये बाजार में पूंजी की लागत भी बढ़ा रहा है। इसी तरह तुर्किए, स्वीडन और नॉर्वे ने भी ब्याज दरों को बढ़ाया है, जबकि दक्षिण अफ्रीका, ताईवान, हांगकांग, मिस्र, फिलीपीन्स, इंडोनेशिया और भारत में ब्याज दरें स्थिर हैं।चूंकि अगले साल में महामंदी की संभावनाएं मौजूदा आंकड़े और उनके ट्रेड से यह दर्शा रहे हैं, जिसपर सरकारों को ध्यान देना जरूरी है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, दुनियां की सभी अर्थव्यवस्थाओं में अगले साल भारी नरमी देखने को मिल सकती है जो महामंदी का रूप ले सकती है जिसके संकेत मिल रहे हैं।
साथियों बात अगर हम मौजूदा विपरीत आंकड़ों की करें तो, मौजूदा वक्त में दुनियां भर की अर्थव्यवस्थाएं नरमी के दौर से गुजर रही हैं। महंगाई को कंट्रोल करने के सभी कदम विफल होते दिख रहे हैं। कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा जारी है। खाद्य वस्तुएं भी लगातार महंगी और आम आदमी पहुंच से दूर हो रही हैं। हाल में भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका और पाकिस्तान केबदतर हालात किसी से छिपे नहीं है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अगले साल दुनियां की सभी अर्थव्यव्यवस्थाओं में भारी नरमी देखने को मिलेगी, जो महामंदी की तरह हो सकती है। साल 2023 में किसी तरह दुनियां की इकोनॉमी की नैया पार भी हो जाए, तो अगले साल महामंदी आने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। क्या अमेरिका, क्या यूरोप और क्या एशिया, सभी जगह हालात लगभग समान ही हैं।
साथियों बात अगर हम भारत की करें तो, खाने-पीने की चीजों के महंगे होने के साथ जुलाई 2023 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो जून 2023 में 4.87 प्रतिशत पर थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार,महंगाई में उछाल का मुख्य कारण जुलाई महीने में सब्जियों और खासकर टमाटर की कीमतों में तेज उछाल आना है। जुलाई में कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स के 7.44 प्रतिशत पर पहुंचने के साथ देश में मुद्रास्फीति का स्तर पिछले पांच महीनों में पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक के संतोषजनक लेवल 2-6 प्रतिशत के पार पहुंच गया गया है। इसके अलावा उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक जून में 4.49 प्रतिशत से बढ़कर 11.51 प्रतिशत पर पहुंच गया। जुलाई में भारत की ग्रामीण मुद्रास्फीति सालाना आधार पर 4.78प्रतिशत से बढ़कर 7.63 प्रतिशत हो गई, जबकि शहरी मुद्रास्फीति जून 2023 में 4.96 प्रतिशत से बढ़कर 7.20 प्रतिशत हो गई।सब्जियों की मुद्रास्फीति दर में तेज वृद्धि देखी गई और जुलाई 2023 में यह सालाना आधार पर बढ़कर 37.34 प्रतिशत हो गई। इसके अलावा खाद्य एवं पेय पदार्थों की महंगाई दर का स्तर जून 2023 में 4.63 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई 2023 में 10.57 प्रतिशत हो गया। अनाज की महंगाई दर जून 2023 में 12.71 फीसदी से बढ़कर 13.04 फीसदी हो गई।
साथियों बात अगर हम भारत कनाडा के बिगड़ते रिश्तों से अर्थवयवस्था पर प्रभाव की करें तो, कुछ व्यापार सौदे जो होने थे, उन्हें भी फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। दोनों देशों के बीच बिगड़ते हालातों ने काफी तनाव पैदा कर दिया है।कनाडा भारत के बीच साल 2023 में कारोबार 8 बिलियन डॉलर यानें 67 हजार करोड़ रुपये का था, ऐसे में अगर तनाव बढ़ता चला गया तो इससे इकोनॉमी को करीब 67 हज़ार करोड़ का नुकसान होने की संभावना हैइकोनॉमी वॉर के बाद अब आम पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। कनाडा-भारत विवाद के चलते आम आदमी के किचन का बजट बिगड़ने की संभावना है। वहीं, देश में महंगाई कम होने की बजाए बढ़ सकती है।अगर भारत कनाडा विवाद लंबे समय तक चला तो दाल की सप्लाई में कमी आ सकती है। मसूर की आपूर्ति प्रभावित होने से इसकी कीमतों पर असर दिखेगा। देश में दाल के दाम बढ़ सकते हैं। गौरतलब है कि सरकार पिछले कुछ महीनों से दालों की महंगाई को काबू करने के लिए कई कदम उठा चुकी है। सरकार की ओर से दलहन इंपोर्ट की शर्तों में ढील दी गई है। इसके अलावा घरेलू स्तर पर स्टॉक लिमिट भी लगाई गई है। हालांकि सरकार की ओर से की गई तमाम कोशिशों केबावजूद दालों की महंगाई कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कनाडा विवाद भी दालों की महंगाई कम होने के बजाय और बढ़ सकती है।
साथियों बात अगर हम अमेरिका और विश्व की करें तो, फेडरल रिजर्व से लेकर ब्रिटेन के बैंक ऑफ इंग्लैंड तक और भारत में भारतीय रिजर्व बैंक, सभी ने महंगाई कंट्रोल करने के लिए बीते साल लगातार ब्याज दरों को बढ़ाया। इससे आंकड़ों में महंगाई नरम होती दिखी, लेकिन जमीनी हकीकत पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, उल्टा इससे बाजार में पूंजी की लागत बढ़ी है। हालांकि पश्चिमी देशों में महंगाई जहां अपने चरम पर है और हालात में बहुत सुधार नहीं है, वहीं भारत में स्थिति थोड़ी बेहतर है।इस बीच फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड दोनों ने ब्याज दरों में कमी तो नहीं की है, लेकिन आगे इन्हें बढ़ाने की संभावना बरकरार रखी है। वहीं बैंक ऑफ जापान ने निकट अवधि में ब्याज दरों को बढ़ाए जाने की अटकलों को कम कर दिया है, क्योंकि जापान का केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए बेहद आसान और प्रोत्साहन वाले कदम उठाने पर काम करना जारी रखेगा। फिर भी ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट ग्लोबल इकोनॉमी के लेटेस्ट ट्रेंडस को दिखाती है, जो वर्ल्ड इकोनॉमी में अगले साल भारी नरमी के संकेतों पर ध्यान खींचती है।अमेरिका, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन ने हाल में साफ कहा कि केंद्रीय बैंक अब ब्याज दरों को और नहीं बढ़ाएगा। हालांकि बैंक के अन्य अधिकारियों ने साफ कर दिया कि देश में लोन यानें पूंजी की लागत लंबे समय तक ऊंची बनी रहेगी। ऐसे में कंपनियां स्टाफ में कटौती और लागत घटाने के अन्य विकल्पों पर विचार कर सकती हैं। इतना ही नहीं इसका एक संकेत अमेरिका के लास वेगास के होटल बिजनेस से भी मिलता है। कोविड में कम स्टाफ के साथ काम करने की कला सीख चुके लास वेगास के होटल्स अब 3 साल बाद भी कम लोगों को ही नौकरी पर रख रहे हैं, क्योंकि लेबर की लागत बढ़ रही है जबकि लास वेगास अमेरिका ऐसा शहरहैं जहां हर 4 में से 1 व्यक्तिहॉस्पिटैलिटी सेक्टर में काम करता है।
साथियों बात अगर हम यूरोप और चीन की करें तो, यूरोप : ब्रिटेन के बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ब्याज दरें बढ़ाने के अपने काम को अब रोक दिया है. बीते 3 दशक के दौरान ब्रिटेन ने हाल में सबसे तेजी ब्याज दरें बढ़ाईं,ताकि महंगाई कोकंट्रोल किया जा सके। लेकिन इससे अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत दिखने लगे और आखिर में अब ब्याज दरें आगे और नहीं बढ़ाने का फैसला लिया गया है। ब्रिटेन के रीयल एस्टेट मार्केट में भी नरमी देखी जा रही है, इसकी एक बड़ी वजह रेंटल कॉस्ट का बीते एक दशक में सबसे ज्यादा बढ़ना है।चीन, कोविड के बाद चीन की अर्थव्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है, और सुधार के संकेत नहीं दिख रहे हैं। 2023 में जहां इसकी इकोनॉमिक ग्रोथ 5.1 प्रतिशत के पास रहने का अनुमान है।वहीं अगले साल ये घटकर 4.6 प्रतिशत पर आने की संभावना है। इसका असर पूरी वर्ल्ड इकोनॉमी पर भी दिखेगा। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के आंकड़ों के मुताबिक इस साल वर्ल्ड इकोनॉमी की ग्रोथ रेट 3 प्रतिशत के आसपास रहेगी जो अगले साल नरम पड़कर 2.7 प्रतिशत रह जाएगी।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 2024 की कामना - वैश्विक महामंदी से हो सकता है सामना।दुनियां में वर्ष 2024 में महामंदी छाने की संभावनां।दुनियां की सभी अर्थव्यवस्थाओं में अगले साल भारी नरमी देखने को मिल सकती है, जो महामंदी का रूप ले सकती है।

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kishan bhavnani
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
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