मां है घर आई
मां है घर आई
मां है घर आईचहुं दिग खुशियां छाईं
झूम उठा है कण-कण माटी का
हर चेहरे पर रौनक आई।
नौ दिन खूब मचेगी धूम
मां की कृपा से ना रहेगा कोई महरूम
नित नए रूप में देगी दर्शन
हम भक्ति करेंगे झूम।
चौकी सुंदर सजाएंगे
मां को उस पर बिठाएंगे
घट करेंगे स्थापन
पीले शेर को बुलायेंगे।
ध्वजा नारियल चढ़ाएंगे
सुंदर पुष्प की माला पहनाएंगे
कुमकुम चंदन से करेंगे तिलक
लाल-लाल चोला चढ़ाएंगे।
रोज भोग करेंगे मां को अर्पण
आंखें होंगी मां का दर्पण
रोज गाएंगे आरती
मन को करेंगे मां को समर्पण।
© लक्ष्मी दीक्षित
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© लक्ष्मी दीक्षित |
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
लेखिका, आध्यात्मिक गाइड