शराब का विकल्प बनते कफ सीरप
सामान्य रूप से खांसी-जुकाम के लिए उपयोग में लाया जाने वाला कफ सीरप लेख या चर्चा का विषय नहीं हो सकता। पर पिछले कुछ महीनों से भारत में बनने वाले कफ सीरप शक के घेरे में हैं। जैसे कि कुछ अफ्रीकी देशों और उज्बेकिस्तान जैसे देशों में भारत में बने कफ सीरप के कारण बच्चों की मौत होने के समाचार सामने आए है।दूसरी ओर भारत में पूर्वोत्तर भारत से महाराष्ट्र तक के अनेक राज्यों में अनेक तरह के कफ सीरप का उपयोग नशा करने के लिए होता हैं। खास कर गुजरात में कफ सीरप के बारे में बारबार इस तरह के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। जैसे यह दवा न हो कर अल्कोहल हो। नशा करने की चीज हो इस तरह इसका धड़ल्ले से दुरुपयोग होता है। गुजरात राज्य में कफ सीरप की चर्चा तो घर-घर होती है।
कुछ दिनों पहले गुजरात के खेड़ा जिले में कफ सीरप पीने से 7 लोगों की मौत होने पर अचानक स्थानीय प्रसाशन, पुलिस, फूड एंड ड्रग्स विभाग और सरकार अचानक सोते से जाग उठी। वास्तव में गुजरात में पिछले कुछ समय से आयुर्वेदिक सीरप के नाम पर नशा बिक रहा था। इस वजह से युवा नशीले सीरप के आदी हो गए हैं। पुलिस ने छापा मार कर सौराष्ट्र से ले कर उत्तर गुजरात के इलाकों से मेघासव-जेरेजन नाम के आयुर्वेदिक सीरप की हजारों बोतलों का भंडार जब्त किया है। इससे यह साबित हो गया है कि पूरे राज्य में आयुर्वेदिक सीरप के नाम पर नशीले द्रव्यों का पूरा सुव्यवस्थित नेटवर्क चल रहा था।
यही नहीं, कुछ बदमाशों ने तो नशीले आयुर्वेदिक कफ सीरप बनाने का गृह उद्योग ही लगा रखा था। अहमदाबाद के दाललीमड़ी का रहने वाला एक युवक कफ सीरप में नींद की दवा और इसी तरह की अन्य नशीली दवाएं मिला कर बेचता था, जिसकी वजह से नशा करने वालों की उसके यहां भीड़ लगी रहती थी। जब उसके घर की तलाशी ली गई तो मेटाहीस्ट-एस नाम के कफ सीरप के 3 भरे केन मिले थे। इसके अलावा नाइट्रेजेपाम टेबलेट और मेटाहीस्ट-एस मिक्स किया हुआ साढ़े 4 लीटर नशीला प्रवाही मिला था।
सामान्य आसव अरिष्ट आयुर्वेद सीरप सांस की बीमारी में रोगी को दिया जाता है। पर मेघासव नाम से बिकने वाले आयुर्वेदिक सीरप में 12 प्रतिशत से अधिक मिथनोल मिले असंख्य सेंपल पकड़े गए हैं। जानकारों का कहना है कि यह 12 प्रतिशत से अधिक मिथनोल शरीर पर बुरा असर डाल सकता है। इंसान अंधा हो सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है।
राज्य का फूड एंड ड्रग्स विभाग इस तरह के पेय के लिए लाइसेंस नहीं देता। गुजरात में इस समय 915 आयुर्वेदिक दवा बनाने वाले कारखाने हैं और 150 जगहों पर आयुर्वेदिक दवाएं बनती हैं। दवा उद्योग के जानकारों का कहना है कि 11 प्रतिशत से कम अल्कोहल वाले आयुर्वेदिक दवा सीरप को बेचने की मंजूरी की जरूरत नहीं है। पर यह प्रोडक्ट किस तरह बिक रहा है, इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी फूड एंड ड्रग्स विभाग की है।
फार्मास्युटिकल कंपनियां इस बारे में अलग ही मंतव्य रखती हैं। किसी भी दवा का उपयोग उनके अनुसार 'अग्नि' जैसा है। अग्नि पर भोजन पका सकते हैं और आग लगने पर घर जल सकता है। अगर रजिस्टर्ड प्रैक्टिसनर द्वारा उचित सीरप लिखा जाए तो वह फायदेमंद हो सकता है। पर ऐसा वैसा कफ सीरप लेने से नुकसान हो सकता है।
कफ सीरप मूलभूत रूप से 3 तरह से बनता है। सप्रेसंट, एक्स्पेकटोरंट और डेम्युलसंट। सप्रेसंट से खांसी नियंत्रण में आती है तो एक्स्पेकटोरंट से कफ बाहर आता है और डेम्युलसंट रोगी को राहत देने का काम करता है।
औनलाइन फार्मेसी द्वारा कमीशन को ले कर तमाम नियमों को भंग कर के ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की व्यवस्था करने वाली एक पिटीशन गुजरात हाईकोर्ट में की गई है।
औनलाइन फार्मेसी कंपनियां प्रिस्क्रिप्शन की ठीक से जांच नहीं करतीं। केवल प्रिस्क्रिप्शन लिखने के लिए डाक्टर्स किराए पर रखे जाते हैं। रोगी को चेक किए बिना ही डाक्टर्स प्रिस्क्रिप्शन बना कर देने की बात भी पिटीशन में की गई है। दूसरे मेडिकल काउंसिल की मान्यता न रखने वाले डाक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर दवा बेचने का पता चला है।
ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स के नियमों के अनुसार डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के बिना दवा नहीं बेची जा सकती। फिर भी पता चला है कि गुजरात में ग्रामीण इलाके में एक दवा की दुकान पर नियमों को भंग करते हुए 25 हजार से अधिक कफ सीरप की बोतलें बेचने का पता चलने पर फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने कार्रवाई की थी।
महानगरों में खास कर मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे शहरों में मजदूर वर्ग, कारखाने में काम करने वाले लोग गंध न आने की वजह से नशा करने की आदत पड़ गई हो ऐसे लोग कफ सीरप का नशा करते हैं। मुंबई में कफ सीरप का दुरुपयोग कम नहीं होता। इसके लिए एक मामला ध्यान देने लायक है।
16 साल की प्रियम पांचाल पूरे दिन सोई रहती थी और रात को जागती थी। फिर भी उसके माता-पिता को कुछ आश्चर्य नहीं लगता था। एक दिन जब उसके पिता ने रात को दोस्तों के साथ बाहर नहीं जाने दिया तो उसने पिता को थप्पड मार दिया। इसके बाद प्रियम के माता-पिता को उसके बेड के नीचे से कफ सीरप की 40 बोतलें मिलीं। प्रियम को ऐसी कोई बीमारी नहीं थी कि उसे कफ सीरप की जरूरत पड़ती। वह बहुत ही उग्र और हिंसक बन चुकी थी। उसके माता-पिता ने उसके इस व्यवहार को एक महीने से अधिक समय तक नजरअंदाज किया और डाक्टर से सलाह लेने में काफी देर कर दी। जब उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया तो उसे कोडीन एडिक्शन (कफ सीरप में डाला जाने वाले एक दर्दनाशक और सम्मोहक पदार्थ का व्यसन) लग जाने का पता चला। इसके बाद उसे एक ड्रग एब्युज इन्फौर्मेशन रिहैबिलिटेशन एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया।
व्यसन (लत) छुड़ाने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि प्रियम का मामला अलग या हैरान करने वाला नहीं था। उत्तर-पूर्व के राज्य तो कोडीन के व्यसन के लिए कुख्यात हैं। पर मुंबई और दिल्ली के तरुणों में भी इस व्यसन की मात्रा काफी हद तक बढ़ रही है। कफ सीरप में कोडीन भरपूर मात्रा में होता है। यदि कफ सीरप का लंबे समय तक उपयोग किया जाए तो आदमी व्यसनी बन सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार मुंबई में व्यसन मुक्ति कार्यक्रम में आने वाले लोगों में 6 से 15 प्रतिशत लोग कोडीन या कफ सीरप के व्यसन का इतिहास रखने वाले होते हैं। 13-14 साल के बच्चों को कोडीन का व्यसन सब से अधिक होता है। महिलाओं में कोडीन के व्यसन की मात्रा पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है। कोडीन के व्यसन का शिकार बनने वाले 10 वोगों में 3 टीनएज लड़कियां होती हैं।
5 मिलीलीटर सीरप में कोडीन फास्फेट की मात्रा 10 मिलीग्राम होती है। पर कोडीन अधिक मात्रा में शरीर में जाए तो शराब जैसा नशा और बेहोशी चढ़ने लगती है। 50 से 100 मिलीलीटर की कफ सीरप की शीशी दवा की दुकान पर 75 से 100 रुपए में बिकती है। इस सीरप से विशिष्ट तरह की किक लगती है, इसलिए बहुत लोग इसके आदी बन जाते हैं।
मुंबई में एक रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाने वाले का कहना है कि 'कोडीन के व्यसन से पीड़ित लोग शांत और छुप कर रहते हैं। युवा सीधे कोडीन अथवा अन्य प्रकार के ड्रग (कफ सीरप के रूप में) ले सकते हैं, पर लड़कियां कफ सीरप के मारफत कोडीन का व्यसन करती हैं। यह उन्हें सब से सुलभ और सब से सस्ता भी पड़ता है।
पिछले साल मुंबई में कफ सीरप की अधिक बिक्री पर लगाम लगाने के लिए दवा की दुकानों पर छापे मारे गए थे। बिल और प्रिस्क्रिप्शन के बिना कफ सीरप की 15 सौ बोतल बेचने वाले 40 केमिस्टों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे। सीरप बेच कर तमाम केमिस्ट 40 से 50 हजार रुपए हर महीने कमाते हैं। यह समस्या डरावनी है।
कफ सीरप के प्रकार
कफ सीरप को कोडीन वाला और बिना कोडीन वाला, इस तरह दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।कोडीन वाले कफ सीरप से सुस्ती का अनुभव होता है। इसलिए इसे रात को सोते समय लेने के लिए कहा जाता है।
सामान्य कफ सीरप का असर 7 घंटे तक रहता है। जबकि कोडीन वाले कफ सीरप का असर 12 घंटे रहता है। टीनएजरों और युवाओं में कफ सीरप का व्यसन सब से अधिक मात्रा में होता है। ज्यादा समय तक कफ सीरप का उपयोग करने से गले, होंठ और चेहरे पर सूजन जैसी समस्या हो सकती है।
कैसे छूटे इसकी लत
कफ सीरप के व्यसन से पीड़ित लोगों कि इलाज 9 महीने तक या कभी-कभी इससे अधिक चलता है। इनका व्यसन छुड़ाने के लिए गोलियां दी जाती हैं। कभी ये अकेलेपन और हताशा से पीड़ित होते हैं।कफ सीरप के व्यसन की परख कैसे करें?
पढ़ाई में अचानक बच्चे के नंबर कम आने लगें, वह अंतर्मुखी हो जाए या उसे क्लास से बाहर किया जाने लगे तो पता करना चाहिए कि कहीं वह कफ सीरप का व्यसनी तो नहीं हो गया है।बच्चा परीक्षा में ध्यान न दे रहा हो और नियमित होमवर्क न करता हो।अचानक दोस्त बदल दे और अलग-अलग शौक और व्यसन वाले उसके दोस्त बन जाएं तो पता करना चाहिए।
कफ सीरप का व्यसन करने वाले लोग कफ सीरप की बोतल छुपाने लगते हैं। यह छुपाने की आदत भी एक संकेत है। बच्चा चिड़चिड़ा हो जाए, उसे अकेलापन अच्छा वगने लगे और हमेशा थकाथका लगे।
कफ सीरप की लत कैसे लगती है?
कफ सीरप आसानी से और सस्ता मिलता है। पर इसमें ऐसे तमाम घटक होने से इसे लगातार लिया जाए तो आदत पड़ जाती है।कफ सीरप का असर तुरंत होता है।
देशी-विदेशी शराब या ड्रग्स महंगा होता है, इसलिए लोगों ने नशे का यह नया विकल्प खोज लिया है। कफ सीरप की एक बोतल अंग्रेजी शराब के एक क्वार्टर जितना नशा करती है। इसलिए लोग दिन में कफ सीरप की कई कई बोतल पी लेते हैं। सब से बड़ी बात तो यह है कि इससे किसी तरह की दुर्गंध भी नहीं आती, इसलिए किसी को नशा करने का पता भी नहीं चलता।
मात्र भारत में बेचने के लिए यह दवा सूखी खांसी और जुकाम के लिए है। पर दवा की मात्रा नशा का अनुभव कराती है, इसलिए कारीगर और लड़के लड़कियां इसका उपयोग बिंदास करते हैं।
गुजरात में शराब बंदी होने की वजह से वहां तो आयुर्वेदिक सीरप नशे के लिए पान और किराने की दुकानो पर भी बिकते पकड़े गए हैं। इनमें अल्कोहल की मात्रा 14 प्रतिशत से अधिक पाई गई है। इनकी शीशी पर रैपर इस तरह का लगा था, जिस तरह आयुर्वेदिक दवाओं की शीशी पर लगता है, जिससे पुलिस को शक न हो। जबकि आयुर्वेदिक दवाओं में अल्कोहल का उपयोग बिलकुल नहीं होता।
ऐसे तमाम बेईमान किस्म के लोग प्रसिद्ध दवाओं की नकल कर के नकली कफ सीरप बनाते हैं और उसमें नशीला पदार्थ मिलाते हैं। इस तरह की नुकसानदायक दवा बाजार में न आए यह देखने की जिम्मेदारी प्रशासन की है। दूसरी ओर अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके बच्चे कफ सीरप का उपयोग नशे के लिए न करने पाएं।
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