कविता तुम्हारा इंतज़ार | kavita tumhara intezar

तुम्हारा इंतज़ार

कविता तुम्हारा इंतज़ार | kavita tumhara intezar
सुनो दिकु...

तुम्हारे इश्क में टूटकर बिखर रहा हूँ
में आज भी तुम्हारे इंतज़ार में जी रहा हूँ

कभी इस जीवन में वीरानपन
तो कभी आखों में समंदर का पानी पी रहा हूँ
में आज भी तुम्हारे इंतज़ार में जी रहा हूँ

तुम तक एकबार मेरी बात पहुँचाने की ख्वाइश है
में कोई बड़ी सख्शियत को नहीं जानता
मेरे पास तो मेरा परिश्रम ही मेरी गुंजाइश है

हज़ारों चोटें खाकर
खुद के दर्दो को
तुम्हारी यादों के सहारे-सी रहा हूँ
में आज भी तुम्हारे इंतज़ार में जी रहा हूँ

एक दिन तो ज़रूर आएगा
जो दिकुप्रेम के रिश्ते की किस्मत चमकाएगा
खुद को ठोकर देकर भी अपने इरादों की मज़बूती कर रहा हूँ

सुनो दिकु
में आज भी तुम्हारे इंतज़ार में जी रहा हूँ
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए

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प्रेम ठक्कर | prem thakker
प्रेम ठक्कर
सूरत ,गुजरात 
ऐमेज़ॉन में मैनेजर के पद पर कार्यरत  
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