Kisan kavita by Indu kumari bihar
July 31, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
शीर्षक- किसान
युगों से आज तक
मरते आए हैं किसान
जान रहे सारे जहान
कड़ी मेहनत के बल पर
मिट्टी से अन्न उपजाते हैं
उपजाऊ हो या बंजर धरती
फसलें लहलहाते हैं
चिलचिलाती धुप हो
या हो सर्दी बरसात
मोड़ते नहीं मुख को अपने
करते रहते हरदम काम
फटी धोती चीथड़े गंजी
जर्जर काया नंगे पाँव
एक सपने आँखों में लेकर
करते रहते हरदम काम
पूरी ना होती उनकी आस
जानें कैसे मिटेगी प्यास
लू चले या ओले पड़े
खेतों में वो काम करे
किसान तेरी यही कहानी
दलालों की चलती मनमानी
अगर कहीं बीमार पड़े
खजाने तो खाली पड़े
कर्ज के मकड़जाल में
फंसते चले जाते हैं
फूटी कौड़ी नहीं बचा पाते हैं
पैसों के अभाव में वह
आगे कुछ नहीं कर पाते हैं
स्व रचित
डॉ. इन्दु कुमारी
हिन्दी विभाग
मधेपुरा बिहार
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