Meghmala kavita by dr. H.K Mishra

August 06, 2021 ・0 comments

 मेघमाला

Meghmala kavita by dr. H.K Mishra


आते जाते देखा है अपनो को ,

सुख दुख को देखा जीवन में ,

राह नया कुछ रचती चल ,

सुख दुख में साथ निभाती है ।

मेरे जीवन के समतल में ,

छंद नया कुछ गाती है  ।।


नैतिकता की बात कहां है,

कभी नहीं अपनाई जिसने ,

आज चले हो ज्ञान बांटने ,

कौन इसे स्वीकार करेगा ?


आत्ममंथन थोड़ा सा कर लो,

नैतिकता का पाठ  गहन है ,

थोड़ा भी संस्कार बचा  गर ,

चल दुखियों के पास खड़ा हो।  ।।


कहते सदा समाजसेवी हैं ,

कितने को तूने मदद किया है।?

स्वार्थ सदा देखा है जिसने ,

सबसे ऊंचा बनता अपने।  ।।


पेट सदा भरते हो अपने,

अपनी चिंता सदा किए हो,

कहते हो हम नेता अच्छे,

डूबे हुए दिखते कुकर्म में। ।।


अंदर बाहर स भीभी जगह ,

मन मंदिर में रहती हो,

पूजा अर्चन में लग जाता,

काश हमें मिल जाती तुम ।।


मेरा तेरा प्रेम था कैसा,

बांट बांट कर खाने का,

और इसे थोड़ा सा ले लो,

इक कौर बढ़ाया करते थे  ।।


कहां गया है प्रेम हमारा,

छोड़ अधूरे जीवन को ,

क्या जीना आसान रहेगा,

बहुत कठिन यह जीवन है।   ।।


बिना साथ सब कुछ है सूना,

कोई नहीं अब अपना है ,

स्वप्नमई जीवन को जीना ,

लगता है उधार किसी का  ।।


उमड़ रहा है प्रेम तुम्हारा,

बादल भी हैं  उमड़ रहे ,

मेघमाला बन मंडराते हैं ,

यह माला किसको मैं दूं   ?  ।।


मेघदूत से कहूं मैं कैसे,

संदेशा भेजूं मैं तुझको,

अपनी पीड़ा बांट न पाया,

बहुत-बहुत प्रतीक्षा तेरी  ।।


मौलिक कृति

                    डॉ हरे कृष्ण मिश्र

                     बोकारो स्टील सिटी

                      झारखंड ।।

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