Bura man kar mat baitho by Jitendra Kabir
बुरा मनाकर मत बैठो
उस समय भले ही बुरा लगे
जब हमारे बुजुर्ग
डांट देते हैं हमें गुस्से में आकर,
लेकिन इसके लिए
उनसे नाराज होकर बैठने से पहले
याद रखना होगा हमें
कि उस डांट में भी चिंता छुपी होगी
कहीं न कहीं हमारी भलाई की ही।
उस समय भले ही बुरा लगे
जब हमारे बुजुर्ग
टोक देते हैं हमें जब कोई काम नहीं होता
उनकी सोच के मुताबिक
लेकिन इसके लिए
उनसे नाराज होकर बैठने से पहले
याद रखना होगा हमें
कि उस टोकने के पीछे भी मंशा छुपी होगी
कहीं न कहीं हमारी भलाई की ही।
उस समय भले ही बुरा लगे
जब हमारे बुजुर्ग
हमारी इच्छा के विरुद्ध
जिद्द कर लेते हैं किसी काम को
पूरा करने की,
लेकिन इसके लिए
उनसे नाराज होकर बैठने से पहले
याद रखना होगा हमें
कि बचपन से अब तक सैंकड़ों बार
उन्होंने भी मानीं है हमारी अजीब जिद्दें कई।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314