Prem pathik by Jitendra Kabir
प्रेम पथिक
एक प्रेम बचपन में हुआ था
पुस्तकों से,
जब भी खोला उन्हें
पहुंच गया रहस्य,रोमांच, अहसास
और कल्पना की एक अलग दुनिया में,
उनके माध्यम से ही
मैं परिचित हो पाया साहित्य व समाज की
महान विभूतियों के दर्शन से,
मेरे विचारों एवं व्यक्तित्व निर्माण में जिनकी रही है
एक महती भूमिका,
आज भी सबसे ज्यादा
सकून पाता हूं मैं उनकी ही शरण में जाकर,
आज भी कायम है
मेरा वो प्रेम पुस्तकों से बचपन की तरह निश्छल।
एक प्रेम अब हुआ है इस उम्र में
तुमसे,
जब भी देखा तुम्हें दिल धड़क गया जोरों से,
सोचा तुम्हें तो
ख्वाब बुन डाले सुहाने कई,
लिखा जो कभी
तो रंग दिए प्रेम से आसमान कई,
मेरी बेचैनियां सकून
पाती हैं तेरे ख्यालों में अक्सर
और मेरी खुशियां
मांगती हैं तेरी मौजूदगी जिंदगी में अद्यतन।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314