दर्द कहां से पाया हूं ?- डॉ हरे कृष्ण मिश्र
September 22, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
दर्द कहां से पाया हूं ?
तपन जीवन की कहती है ,अपना जो शेष जीवन है ,
धरा पर जो सुरक्षित है,
सब उसी की मर्जी है ।।
चलो एक बार मिलते हैं,
अभी तो दूर मंजिल है।
बता गंतव्य अपना तू ,
अपना प्रयास करता हूं,।।
बचे हैं सांस जो अपने,
उसी पर तो भरोसा है,
जीवन का भरोसा क्या,
रुकेगी कब कहां धड़कन ।।
कहना भी बड़ा मुश्किल,
दर्पण भी तो हंसता है ,
गुजर जाए सही जिंदगी,
अपेक्षा तो हमारी है ।।
गुजरे कुछ हमारे दिन,
आंसू के सहारे ही ,
सिकन बिस्तर बताती हैं ,
यहीं आंसू गिरे तेरे ।।
चलो अपने घर चलें ,
अंतिम शब्द तुम्हारे हैं,
यहीं हंसना यहीं रोना
जिंदगी तो हमारी है ।।
अपने चिंतन से भटक गया,
चिंता में कहा नहीं भटका,
कोई ऐसा पल मिला नहीं,
यादों से दूर गई हो तुम ।।
थका थका जीवन लगता है
दूर गगन तक छांव नहीं है ,
छाया के पीछे दौड़ रहा हूं ,
माया में जीवन घिर आया है।।
ढूंढ रहे हम धरा धाम पर ,
विश्वास हमारा टूट गया है,
दिन-रात भटकता रहता हूं,
अब चैन कहां मिल पाएगा ।।
जीवन के सूनेपन को मैं ,
तेरी यादों से सहलाया हूं ,
सोच नहीं पाया क्या खोकर,
दर्द कहां से पाया हूं ?
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