Dil parvana by km.soni muskan
दिल परवाना (कविता)
इश्क की गलियों से जो गुजरा
दिवाना हो गया
जब मिला कोई रूप प्यारा दिल परवाना हो गया
हम उनसे इश्क उस कदर कर बैठे..
उन्हें देखने के लिए अपने घर से रवाना हो गया।
इश्क में सुकुन तो मिला तकलीफें कम न हुई
लोगों को पता चला तो मुश्किलें बढ़ती ही गई
मुझे लगा इश्क को जाहिर नहीं होने देंगे..
पर इस राज को इतना मुश्किल छुपाना हो गया।
जब मिला कोई रूप प्यारा..........
कितना सुंदर था वो पल जब हम थे मिलन में
आकर स्वपनों में तुम्हीं बता दो हमें एक पल में
बिक गए इश्क के बाजार में हम इस कदर..
कि चैन से रहना अब बेठिकाना हो गया।
जब मिला कोई रूप प्यारा.......
कंठों के द्वार से होठों पर ध्वनियां निकल न पातीं
मन मस्तिष्क में इच्छाएं बनते बनते ही थक जाती
बीत जायेगी मेरी जिंदगी तन्हा तुम जो अगर खुश हो
जिसे समझा था वो भी बेगाना हो गया।
जब मिला कोई रूप प्यारा.........
जब थे संग तुम जिंदगी थी मेरी निर्मल
जाते ही मेरी जिंदगी बन गई कौतुहल
हम भी कहते फिरते थे पागल पतिंगे हैं हम
मरने के बाद लोगों को मेरे दिल को जलाना हो गया।
जब मिला कोई रूप प्यारा..... ।
कु. सोनी भारती
चकिया (चंदौली) उत्तर प्रदेश