He narayan par lga do by vijay Lakshmi Pandey
हे !नारायण पार लगा दो ...!!
रे ! रँगरेज मोरी चुनर रंग दे ,
धानीं चटख गुलाबी में ।
पीत बसन्ती अँचरा रंग दे,
जरदोज़ी, लाल किनारी में।।
रे ! माली मोरे गजरा चुन दे,
गेंदा , चंपा ,जूही में ।
मैं मदमारी मैं मतवारी ,
पिया मिलन को जाऊँ मैं ।।
पँचतोरिया वह पहिरि चुनरी,
चादर चमक निराली मैं।
तुम तो मेरे परम् सनेही ,
कारीगरी तुम्हारी मैं ।।
रे ! दरपन तुम साँच बताना ,
काहे भई पराई मैं ।
तुम तो बड़े सयाने मेरे ,
फिरती मारी - मारी मैं ।।
मुझ पर धूल जमीं बरसों से,
कसक मिलन की बाक़ी मैं ।
निखर रही दिन -दिन मैं प्रियतम,
यौवन की तैयारी मैं ।।
अब तो नज़र टिकी है तुम पर,
पा जाऊँ , बड़भागी मैं ।
थोड़ा सा अवसर ही माँगू ,
चरणों की अनुरागी मैं ।।
साँच कहे यह "विजय" विरह में,
अब तो कृपा तुम्हारी मैं ।
हे ! नारायण पार लगा दो ,
नैया भारी , भारी मैं ।।
हे ! नारायण पार लगा दो ।
नैया भारी , भारी मैं ।।
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम. ए., बी.एड.(हिन्दी)
स्वरचित मौलिक रचना
आजमगढ़, उत्तरप्रदेश