Pahla safar ,anubhuti by Jay shree birmi

 पहला सफर,अनुभूति

Pahla safar ,anubhuti by Jay shree birmi


करोना काल में लगता था कि शायद अब दुनिया से कट कर ही रह जायेंगे। ऑनलाइन देख खूब नाश्ते भी बनाए , बेकिंग भी की,बागबानी भी की, ऑन लाइन कीर्तन भी किया,चली थोड़ा सकुन और सखियों से मिलना भी हुआ।लिखने का भी यत्न किया।खूब याद करते थे अपने दिन जब कभी कीर्तन जाया करते,माता रानी की भेटें भी गया करते थे,प्रसाद के बाद सब मिलके मिजबानी किया करते थे।जब अपने घर कीर्तन होता था तो कैसे भवन सजाएंगे ,क्या  मातारानी को क्या भोग लगाएंगे,क्या सत्सन्गीनियों को क्या क्या खिलाएंगे और क्या क्या आयोजन करते थे।जब किटी पार्टी होती थी तब भी,क्या बनाएंगे नाश्ते, हाउसी कैसे खिलेंगे और पता नहीं क्या क्या आयोजन होता था।अब तो लगता हैं ये सभी कलाएं ही भूल जायेंगे।जब मिलेंगे तो कैसे मिलेंगे? सब सखियां मिल यात्रा ,या ऐसे ही घूमने जाते थे ,अब बस सब ही एक स्वप्न सा लगता हैं।याद तो बहुत आती थी उन आजाद दिनों की पर करोना गाइडलाइंस कुछ करने की रजा  नहीं दे रहा था यह तक कि घरके कामों से भी मददनीश को ( कामवाली बाई) छुट्टी कर खुद ही सारा काम किया,सोचा क्या दिन आए हैं।

 और जब अब सब कुछ थोड़ा ठीक हुआ हैं तो एकदीन किटी पार्टी का आयोजन हो गया और लगा की लौट आए हैं पुराने अच्छे वाले दिन,और वहां जो बात हुई वो तो एक कदम आगे ले गई।४ सितंबर के दिन सब ने मिल गोआ जाने का प्लान बना लिया।और आ गई ४ सितंबर,पैकिंग कर सब पहुंचे हवाई अड्डा ,खुश थे बहुत सब ही,आजाद पंछी मास्क के बंधन के साथ हवाईअड्डे की सभी फॉर्मेलिटी पूरी कर उड़ान भरने की राह देख बैठे थे।बाग तो दो थे तो सोचा था चेक इन कर दूंगी किंतु एक ही बैग को चेक इन करने दिया और दूसरा उठा के ले जाना पड़ा,हैरान थी की ऐसा क्यूं? सोचने लगी कि ये बैग उठा के कैसे चडूंगी विमान की सीढ़ियां,७ किलो ही सही पर उठाके चढ़ना ये उम्र में थोड़ा मुश्किल लग रहा था।सोचा वहां खड़े किसी कर्मचारी को बिनती कर  उनकी मदद से ले चलूंगी।बोर्जिंग पास आया और बस में बैठ चले सफर की और,और क्या देखा,एक विमान का बच्चा सा खड़ा हो,बड़े विमान कि  जिसमें हमें जाते थे वो तो नदारद था और बच्चा सा खड़ा था,कहां वो १५ –२० सीढ़ियां और ये! ४ ही थी।अंदर गए तो दो लंबी कतारों के  २०  नंबर तक सीटें,कुल  ७८ लोगों के ही बैठाने का प्रबंध था,इतना छोटा हवाई जहाज और उसमे वैसी ही छोटी छोटी दो परिचारिकाएं हंसतें  हुए  सबको सूचनाएं देते हुए किसी को चाय तो सभी को पानी परोसते हुए इधर से उधर घूम रही थी।पहले इतने छोटे हवाई जहाज में बैठ दर तो लगा किंतु उड़ान अच्छी लगी।

Pahla safar ,anubhuti by Jay shree birmi


,एक खिलौना देख लो,चलने के समय भी जो एक गहरी घरघराहट होती थी वो भी गायब,ऊंची सी खटाखट सी आवाज के साथ सफर शुरू हुआ और २ घंटे में पहुंच गए गोआ , यह भी  भी रसीकरण का सार्टिफिकेट टिकट के साथ साथ दिखा हवाई अड्डे से बाहर आ , सब इक्कठे हो सवारी के आने की राह देख रहे थे।अब १४ लोगो को पहुंचना था होटल तो थोड़ा तो इंतजाम में समय लगना ही था,होटल पहुंच सब ने अपनी आजादी मनाई की अब तकरीबन डेढ़ साल बाद घर से निकले तो सही। उम्र के हर दौर को याद कर के जी भरके जिए और संगीनियों के संग मजे किए।

Pahla safar ,anubhuti by Jay shree birmi


 पता नही ये आजादी कब तक हैं,सब तीसरी लहर से डर तो रहे है,आशंकित से अनजाने में  इंतजार भी कर रहे हैं।प्रार्थना हैं परम इश प्रभु से कि सभी को बचाएं ही रखे।


जयश्री बिरमी

निवृत्त शिक्षिका

अहमदाबाद

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