Aisa jamana ab aa gaya by Jitendra Kabir
ऐसा ज़माना अब आ गया है
अच्छी हो या कि हो फिर बुरी ही,
माता-पिता व बुजुर्गों की बात
चुपचाप सिर झुकाकर सुनने वाले
बच्चों का ज़माना कब का गया,
"हमनें तो नहीं कहा था पैदा करने को!
अपने मजे के लिए हमें पैदा किया है,
अब जो कर दिया है तो खर्चे भी उठाओ।"
अपनी किसी 'डिमांड' को नकारे जाने पर
मां-बाप को इतना भी सुना देने वाले
बच्चों का ज़माना अब आ गया है।
ज्यादा हो या कि हो फिर कम ही,
माता-पिता व बुजुर्गों से मिली सम्पत्ति के लिए
उनके शुक्रगुजार होने वाले
बच्चों का ज़माना कब का गया,
"आपने अब तक हमारे लिए किया ही क्या है?
पैदा करके पाला पोसा तो
कोई अहसान नहीं किया हमारे ऊपर,
दुनिया में सब लोग ऐसा ही करते हैं।"
मां-बाप की उम्र भर की जमा-पूंजी खत्म
हो जाने पर उनको इतना भी सुना देने वाले
बच्चों का ज़माना अब आ गया है।