Khudgarji by Anita Sharma
October 08, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
विषय-खुदगर्जी
खुदगर्ज कौन नहीं इस संसार में।
अपनो का साथ पाने की तमन्ना हर इन्सान में।
अपनापन अपना परिवार सर्वोपरि हर इन्सान को।
इनकी खुशियों की खातिर खुदगर्ज हर इन्सान है।
मतलबपरस्ती में फंसी दुनिया ।
खींचतान कुर्सी की करते नेता ।
हाँ वे भी तो खुदगर्जी है।
भाषणो में भीड़ जुटाते वो भी तो खुदगर्जी है।
रिश्वतखोरी में लिप्त हैं बाबू.....
जल्दी कार्य को बेताबी में जेब गर्म करते।
ये भी तो खुदगर्जी है।
धर्म की अगर बात करें तो-
धर्मगुरु शिष्यो की लाइन बढ़ाता।
नाम भक्तो की संख्या और भीड़।
ये भी तो खुदगर्जी है।
अंधविश्वास में गोल गोल घूमा रहा है-
पैसा सबसे जुटा रहा है।
बाबाओं की खुदगर्जी है।
भक्त चमत्कारिक शक्ति से धन की आस लगाये
ये भी तो खुदगर्जी है।
अकर्मण्यता और खुदगर्जी में डूब रहा संसार है।।
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