Mai shapit hu by komal Mishra koyal
मैं शापित हूँ
घुट घुट कर मर जाने को
मैं शापित हूँ
हर बार जलाए जाने को
नहीं कह पाती हूँ मैं दर्द अपना
मैं शापित हूँ
चुपचाप सह जाने को
पीड़ा देखती हूँ उनकी
मैं भी रो पड़ती हूँ
हाँ मैं शापित हूँ
कुछ ना कह पाने को
होते हैं कुछ रिश्ते ऐसे जैसे
पैरों में बिवाइयाँ या हो मोटे छाले
पर हम शापित हैं
उस चुभन को सह जाने को
हर बार मुस्कुराने को
हाँ हम सब शापित हैं
स्त्री हो जाने को