Kab tu bada huwa re bhaiya by vijay Lakshmi Pandey
कब तू बड़ा हुआ रे भैया...!!!
अम्माँ तुम कहती थी न,
ये तो तेरा छोटा भैया।
मैं भी तो इस नन्हें दीप की,
जी भर लेती ख़ूब बलैया।।
दीदी दीदी कहकर मुझको,
सारा दिन उलझाए।
मिट्टी के ये खेल-खिलौनें,
ज़िद करके बनवाए।।
परियों की दुनियाँ प्यारी,
गोलम -गप्पू की कविताएँ।
मैं बतलाती मैं समझाती ,
तुझको ख़ूब सुहाए।।
ये बातें वो बातें दीदी,
बक -बक करता जाये।
मैं थक जाती मैं घबराती,
पर मक्खन ख़ूब लगाये।।
कितनीं डांट सुनी है मुझसे,
पर नटखट पन दिखलाये ।
मेरे डांट लगाते ही तू ,
चरणों में झुक जाएँ।।
उठा बैठ करवा ले दीदी,
पर नाराज न होना।
मैं तो तेरा नन्हा भैया,
कुछ खानें को दे ना ।।
जब मैं ब्याही गई,
मुझे तुम नन्हा सा दीखता।
पर,जहाँ-जहाँ रस्में तेरी,
तू आगे-आगे मिलता ।।
छोटा सा भैया बनकर तू,
साथ-साथ रहता था।
कैसी दीदी की कगरी है,
मन ही मन बुनता था।।
और पिता के आगे तूने,
एक गुहार लगाई।
सच कहता हूँ दीदी बिन मैं,
पानीं बिन मर जाऊँ।।
एक दीप चमका तू ऐसा ,
सूरज भी शरमाया ।
रहे देखते लाखों तारे,
कान्हा बनकर आया ।।
आते -जाते रहना दीदी ,
ऐसा तेरा भाग्य जगा दूँ।
दीदी तू मेरी दीदी है,
ऐसा मैं सम्मान दिला दूँ।।
अरसे बाद गई पीहर मैं,
धार-धार आँसू ढरके।
रे विधना ,हर घर में मेरे,
भैया सा भैया जनमे।।
यूँ तो अम्माँ -बाबूजी बिन,
घर सूना -सूना दीखता ।
पर भैया का नेह -स्नेह ,
सम्मान बहुत ही मिलता।।
कब तू बड़ा हुआ रे भैया..??
इस "विजय" को बतला दे।
अम्माँ बाबूजी के जाने पर,
सब कुछ कैसे सह जाते।।
बहनों का अभिमान है भैया,
छोटा बड़ा कहाँ से होता ।
आदर सादर वन्दन नमन में,
अंतर कहीं नहीं मिलता ।।