मेरी काव्य धारा-डॉ हरे कृष्ण मिश्र
मेरी काव्य धारा
मेरी काव्य धारा में,
डूबा प्रेम तुम्हारा है ,
रचना भी तुम्हारी है,
प्रणय भी तुम्हारा है ।।
गीतों में शब्दों का ,
चयन भी तुम्हारा है,
साथ बैठ लिख लेते थे,
दर्द को बाटा करते थे ।।
हंसते गाते जीवन अपने,
शब्दों में कट जाते थे ,
आज कहां हम दोनों हैं,
दर्द हमारे कितने हैं ।।
अतीत हमारा दर्द लिए है,
वर्तमान हमारा सूना है ,
जीवन के सूनेपन को मैं,
सरगम सा सहलाया हूं ।।
छंद लोरियां दर्द भरे हैं ,
आतुर मन गा लेता है ,
गले हमारे रूंध गए हैं,
फिर भी गायन करते हैं ।।
इतने सुंदर इतने प्यारे ,
मदिरा भरी हुई प्याली,
किस ने दे दी तुझको ,
नीलम की सुंदर प्याली ।।
नील नयन में खोया है ,
मन विहव्ल सा होकर ,
ख्वाब भरी आंखों में ,
पावन प्रणय ललक है ।।
काश हमारे साथ तू होती,
मेरा मन नहीं बोझिल होता,
मैं भी चलता धीरे-धीरे ,
मिल जाता जीवन पथ ।।
परिभाषा में बांधू कैसे,
जीवन भर का प्यार ,
छोड़ चले हर सीमा को,
तूने छोड़ दिया संसार ।।
मिल बैठ अनुशीलन करते,
संघर्ष भरे जीवन अपना,
बिना तुम्हारे आगे चलना ,
अब नहीं होगा आसान ।।
परिवार हमारा बना प्यार से,
प्यार हमारा जूड़ा तुम ही से,
कहती रही सदा तुम हम से ,
प्यार कभी ना होगा कम ।।
लिखने को लिख लेता हूं,
गाने को मैं गा भी लेता हूं ,
पर गाते गाते रो जाता हूं ,
आंसू रोक नहीं पाता हूं ।।