कुर्सी का चक्कर है प्यारे .- विजय लक्ष्मी पाण्डेय
December 09, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
कुर्सी का चक्कर है प्यारे ...!!!
गढ़नें वाले गढ़ते रहे विपक्ष -पक्ष की बातें ।
कितनें पीछे छूट गए ना लिखी गईं वो रातें।।
जब-जब कोई वक्ता नेता खड़ा मंच पर बकता है।
मेरे नस-नस का जमा खूनअकुलाअकुला कर बहता है।।
रोज शाम जिन पन्नों पर नारी की मर्यादा बिकतीं।
रोज सुबह सिरहनें जिसके दो बोतल दारु की मिलती।।
एक्स- वाई -जेड नेता हो या कोई खद्दरधारी ।
बेटी -रोटी बन्द करो , ये कैसी नीति तुम्हारी।।
काम करो अपनें -अपनें ये जनता नहीं अनाड़ी।
एक -एक सबको दीखता है देश की खातिरदारी।।
कुर्सी का चक्कर है प्यारे काम गिनाओ अपनें ।
क्यों.??दिखलाते जनता को तुम सब्ज़ बाग़ के सपनें।।
बेटी रोटी बन्द करो इससे हटकर कुछ बोलो।
और लिखो इतिहास जीत का अपना भी मुँह धो लो।।
"विजय"मिलेगी खोल के बाहें खुद को खुद से तौलो।
नाम नहीं गिनवाने मुझको देश के साथ तो हो लो।।✍️
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