प्रीतम परदेशी- विजय लक्ष्मी पाण्डेय

प्रीतम परदेशी
"आल्हा राग"

प्रीतम परदेशी- विजय लक्ष्मी पाण्डेय
शिशिर ऋतु की सबसे बैरी,
पूस मास अँधियारी रात।
ता में अरुण गयो दक्षिण दिशि,
घन घमण्ड नभ घिरा अकाश।।

सुनो सखी प्रीतम परदेशी,
ना कहि जियरा लगे हमार,
ना कागा ना पाती जाए,
का सों हाल कहूँ समुझाय।।

रात सखी बदरा घिरि आये,
घर में साजन नाहिं हमार।
दम-दम-दम-दम दामिनि दमकै,
बरसन लागे दैव अपार।

गहि- गहि तीर चलावै पछुआ,
जिसकी वेध सही ना जाय।
पछुवाई सन प्रीति हमारी,
अब तो उलझन दई बढ़ाय ।।

साच कहूँ विरहन भई रतिया,
बरखा, शिशिर ,पूस एक साथ।
कि पछुआ सन्देशा लायो,
कि सुधि लेनें आयो आज।।

चिहुँकि-चिहुँकि जागि मोरिअखियाँ,
हिचकोले ले अंग हमार।
झर-झर, झर-झर नैंना बरसे,
नैंना मेघ भए एक साथ।।

दुनौं मिलि के बरिसन लागे,
पूस रात में तन थर्राय।
काँप रही मैं थर-थर,थर-थर,
आसन डासन भयो लचार ।।

रे मेघा सुन अरज हमारी,
प्रिय सों बात कह्यो तुम जाय।
"विजय"कहे साजन के निहोरे,
नाहि त माहुर देव पठाय ।।

रे मेघा ! तुम भी तो बैरी,
आज घरे मोरे साजन नाय।
बरसो तो सावन भादों में,
बैशाखे पिहु लेऊ बोलाय ।।

जेठ मास छाजन छनवाऊँ,
और आषाढ़ी बरसो छाय।
पूस माघ फागुन मति बरसो,
चैत्र मास दुअरे खरिहान ।

शिशिर ऋतु की सबसे बैरी,
पूस मास अँधियारी रात।
ता मेंअरुण गयो दक्षिण दिशि,
मेघा विरहिनि रहा डराय।।

शिशिर ऋतु की सबसे बैरी,
पूस मास अँधियारी रात।।

विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम.ए,बी.एड.(हिन्दी)
स्वरचित मौलिक रचना
आजमगढ़,उत्तर प्रदेश

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url