हमारे ग्रंथ और हमारा दृष्टिकोण

February 07, 2022 ・0 comments

हमारे ग्रंथ और हमारा दृष्टिकोण

हमारे ग्रंथ और हमारा दृष्टिकोण
जहां सुमति होती हैं वहां संपत्ति भी होती है,परिवार में एक विचार होने से एक सा ही व्यवहार होता हैं।एक सा व्यवहार होने से परिवार में एकरूपता आती हैं।इससे परिवार की उन्नति होती हैं। सुमति होने से भिन्न विचार होने पर भी सभ्य के बीच सुमेल रहता हैं।और कुमति होने से सभ्यों के बीच एक प्रकार से मन मुटाव सा रहता हैं,स्वार्थवश एक दूसरे के प्रति अलगाव सा हो जाता हैं।परिवार की फिक्र कर ने से ज्यादा सब अपनी फिक्र करते हैं। जहां स्वार्थ हैं वहां उन्नति भी वयक्तिक होती हैं,सामूहिक नहीं,पूरे परिवार की नहीं।स्वार्थी व्यक्ति अपने ही फायदे के लिए सोचेगा,कार्य भी अपने लिए करेगा और उन्नति भी उसी की होगी। वहां परिवार के लिए कुछ नहीं होगा।आजकल सब अपनी जिंदगी को बनाने की होड़ में अपनों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं।घर के प्रश्नों में अगर रस ले तो सब के लिए हल आएगा लेकिन वे तो सोचते हैं ’मेरी भी जिंदगी हैं और मैं अपने बारे में ही सोचूं’ क्या यह सही हैं? परिवार ने जो तुम्हारे लिए किया,सुख दुःख बीमारी मै तुम्हारा साथ दिया उसे भूल सिर्फ अपने ही बारे में सोचना कहा तक वाजिब हैं,किंतु स्वार्थ अंधा होता हैं,उसे सोच के चश्मे पहनाकर वास्तविकता से वाकिफ करना ही सुमति है
वैसे ही राज्य या देश के लिए कहा जा सकता हैं।देश की प्रगति और विकास के लिए सुमति होने से ही देश के प्रति जागरूकता आयेगी,देश भक्ति व प्रेम का उद्भव होगा।अपने छोटे छोटे स्वार्थ के लिए हम अपने देश का बड़ा नुकसान कर देते हैं वो नजरिया शायद बदल जाएं।सभी देशवासियों का सहकार ही एकरूपता लायेगा।जब चर्चा होती हैं तो सभी अपने को या अपनी जाति या प्रांत को सही साबित करने की कोशिश में अनर्गल तर्क की प्रस्तुत करते है लेकिन वाचा तो बेलगामी हैं उसे नियंत्रित करना जरूरी हैं ।एक का नहीं सर्व के बारे में सोचना ही सुमति हैं और सुमति से ही प्रगति और ऐश्वर्य आता हैं,आपस में विश्वास पैदा कर के ही जिंदगी की राह आसान होती हैं।
कुमति से तो देश की अवनति होगी, दुनियां में बदनामी होगी जिसका आर्थिक नुकसान और वैश्विक संबंधों में कमी होगी, विश्व अपनी अंदरूनी हालत का गैरुपयोग करेगी,अपनी बदनामी करेगी तो क्या हम इसके लिए तैयार हैं,क्यों हाथ खुल्ला रख उंगलियां गिने? मुट्ठी बना कर एकता दिखा कर दुनियां को डराना ही सुमति हैं।
अगर अपने शास्त्रों के गूढ़ अर्थ वाले अध्याय नहीं सिर्फ छोटे छोटे श्लोक का भी अध्ययन कर जीवन में उपयोग करेंगे तो जीवन सफल और सरल हो जायेगा।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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