विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता- जितेन्द्र 'कबीर

विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता

विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता- जितेन्द्र 'कबीर
आज मेरे स्वप्न में..
पेड़ों ने हड़ताल की
परिंदों के आज़ादी से
आकाश में उड़ने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में,
इसके परिणामस्वरूप
अपने कट जाने के भय से
सहमे हुए से वो
मुझे नजर नहीं आए।
नदियों ने हड़ताल की
मछलियों के आज़ादी से
जल में विचरने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में,
इसके परिणामस्वरूप
अपना रास्ता बदले जाने के भय से
सिकुड़ी हुई सी वो
मुझे नजर नहीं आई।
पर्वतों ने हड़ताल की
हवाओं के आज़ादी से
भूमंडल में बहने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में,
इसके परिणामस्वरूप
खुद को खोखला
कर दिए जाने के भय से
शीश झुकाते से वो
मुझे नजर नहीं आए।
लेकिन हम इंसानों में
बहुत दुर्लभ है
विरोध की ऐसी प्रवृत्ति
खासकर तब
जब हमें हो आशंका
अपना नुकसान हो जाने की
किसी दूसरे के हित में
बोलने पर,
उसके बजाए
हम ताकतवर के समर्थन में
रख देते हैं ताक पर अक्सर
अपनी सारी समझदारी,
न्यायप्रियता, संवेदनशीलता
और बहुत बार इंसानियत भी
अपना फायदा कहीं नजर आने पर

जितेन्द्र 'कबीर
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति-अध्यापक
पता- जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url