विघटन के बीज- जितेन्द्र 'कबीर
March 25, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
विघटन के बीज
एक घर के दो सदस्य,एक शाकाहारी पूर्णतः
लेकिन दूसरे को मांसाहार भाए,
खाने के ऊपर रोज ही उनकी
आपस में कलह बढ़ती जाए,
समझदारी तो इसी में है
कि दोनों सम्मान दें एक-दूसरे की
रुचि और पसंद को
ताकि घर में शांति रह पाए।
अपने देश की भी है कमोबेश
यही स्थिति
जहां बीफ और बकरे के नाम पर
लोगों में फूट डलवाई जाए
और नेता लोग सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से
अपना स्वार्थ सिद्ध करते जाएं।
एक घर के दो सदस्य,
एक पहनता साफा सिर पे
लेकिन दूसरा खुली जुल्फें लहराए,
पहनावे के ऊपर रोज ही उनकी
आपस में कलह बढ़ती जाए,
समझदारी तो इसी में है
कि दोनों एक-दूसरे की इच्छा का
सम्मान रखते हुए
अपने घर को टूटने से बचाए।
अपने देश की भी है कमोबेश
यही स्थिति
जहां हिजाब और स्कार्फ के नाम पर
लोगों में फूट डलवाई जाए
और नेता लोग नफरत की आग लगा
राजनीतिक रोटियां सेंक पाएं।
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.