प्राथमिकता में नहीं- जितेन्द्र 'कबीर'
प्राथमिकता में नहीं
जब सरकारें देने लगें
सियासी लड़ाईयां जीतने परध्यान ज्यादा
और ज़िंदगी की लड़ाई हार रही
जनता पर कम,
तो समझ लेना कि जनता का हित
अब उनकी प्राथमिकता में नहीं।
जब न्यायालय देने लगें
आस्था और भावनाओं के आधार पर
फैसले ज्यादा
और सबूतों व वस्तुस्थिति के
आधार पर कम,
तो समझ लेना कि निष्पक्ष न्याय देना
अब उनकी प्राथमिकता में नहीं।
जब कानून देने लगे
शक्तिशाली व अमीर लोगों को
संरक्षण ज्यादा
और कमजोर व गरीबों की सुनवाई
होने लगे कम,
तो समझ जाना समानता का सिद्धांत
अब उनकी प्राथमिकता में नहीं।
जब पत्रकार देने लगें
धर्म, सत्ता व अर्थ तंत्र से प्रभावित होकर
समाचार ज्यादा
और सच्चाई को दिखाने लगे कम,
तो समझ जाना कि निष्पक्ष खबर देना
अब उसकी प्राथमिकता में नहीं।