प्रकृति के आंचल

 प्रकृति के आंचल

डॉ. इन्दु कुमारी
डॉ. इन्दु कुमारी

 प्रकृति हमारी हम प्रकृति के 

सजाएंगे हम तो पाएंगे हम 

लगाएंगे हम खाएंगे हम 

हरी हरी दूब पर सोएंगे हम

बोया बबूल तो 

कांटे भी पाएंगे 

लगाएंगे आम तो 

फल हमीं खाएंगे

नदिया नीर नहीं पीती 

वृक्ष फल नहीं खाते 

परोपकारी का जीवन 

उपकारी ही सदा होते 

मेहंदी रंग लाती है 

सूख जाने के बाद 

दूध में मलाई होती है

 मथने के बाद

सूर्य रोशनी फैलाते हैं 

चांद अपनी चांदनी 

इंद्रधनुष सात रंगों की

 छटा बिखरा ते 

अडिग हिमालय हमें सिखाते

अविचल होकर रहना 

आंधी तूफान भी आए 

मुसीबतों से ना घबराना 

पृथ्वी सहनशीलता की देवी 

हवाएं ताप को हरती

क्रोध अग्नि के समान 

जलती और जलाती 

प्रकृति का सानिध्य 

अपने आगोश में भरती

अपने आंचल में भरती 

यह प्रकृति बड़ी सुहानी 

करे ना हम मानव मनमानी 

दोस्ती का हाथ बढ़ाओ 

इससे भरपूर जीवन है पाओ।

     डॉ.इन्दु कुमारी 

मधेपुरा बिहार

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