दिव्य प्रकाश।

दिव्य प्रकाश।



ऐसा प्रकाश हम बने,
दिव्य उजाला लेकर आए,
अंधेरे है जीवन में बहुत घने,
हम भी थोड़ी रोशनी बन जाए।

अपने हुनर के सेज से,
कुछ नहीं तो अपने आसपास चमकाए,
प्रेम और दीनता के तेज से,
इंसानियत के दीए जलाएं।

अखंड नैतिकता की ज्योति हो,
जो कभी भुज ना पाए,
चमकदार माला पीरोती हो,
जो हमारे अस्तित्व को सजाए।

सकारात्मकता का चिराग बनकर,
स्वयं में उचित दृष्टिकोण लाए,
यज्ञ की आग सी जलकर,
समस्त नकारात्मकता को जलाए।

ऐसा प्रकाश हम बने,
दिव्य उजाला लेकर आए,
अंधेरे है जीवन में बहुत घने,
हम भी थोड़ी रोशनी बन जाए।

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स्वयं को पहचाने!
डॉ. माध्वी बोरसे।
(स्वरचित व मौलिक रचना)
राजस्थान (रावतभाटा)
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