गैस पीड़ितों के साथ केंद्र और राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका - सुप्रीम कोर्ट से क्यूरेटिव पिटीशन खारिज
टूट गई सारी उम्मीदें
गैस पीड़ितों के साथ केंद्र और राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका - सुप्रीम कोर्ट से क्यूरेटिव पिटीशन खारिज़
दुनिया में सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटनाओंं में एक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की अब सारी उम्मीदें टूट गई - मुआवजा बढ़कर नहीं मिलेगा - एडवोकेट किशन भावनानीगोंदिया - वैश्विक स्तरपर इतिहास गवाह रहा है कि अनेकों प्राकृतिक आपदाओं औद्योगिक दुर्घटनाओंं परिवहन दुर्घटनाओं सहितअनेकों त्रासदियां आती रही है। फ़िर उसकी जांच का क्रम आता है, ताकि उस त्रासदी की जवाबदेही तय की जा सके और दोषियों को सजा मिल सके ताकि ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होने से बचाया जा सके परंतु दशकों से हम देखते आ रहे हैं कि किसी भी केस के न्यायिक अंजाम तक पहुंचने में वर्षों लग जाते हैं।जिसमें पीड़ित सहित हितधारक व दोषियों की मृत्यु तक हो जाती है। इसका सटीक उदाहरण 14 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यूरेटिव पिटिशन को खारिज़ करने के साथ ही 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा बढ़कर नहीं मिलेगा याने त्रासदी के 39 वर्षों तक लड़ाई लड़ने वाले पीड़ितों की टूट गई सारी उम्मीदें। चूंकि आज उच्चतम न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी है,इसलिएमीडिया में आई जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से हम चर्चा करेंगे, गैस पीड़ितों के साथ केंद्र और राज्यसरकार को भी तगड़ा झटका लगा। परंतु भारत की खूबसूरती है कि हर पक्ष माननीय न्यायालय और उनके निर्णय का सम्मान करता है।
साथियों बात अगर हम 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी की प्रक्रियागत स्थिति की करें तो, 2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई। 4 मई 1989 को सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी से 470 मिलियन डॉलर हर्जाना लेनेका आदेश सुनाया।1991 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की रिव्यू पिटीशन खारिज की। हर्जाना बढ़ाने की मांग खारिज हुई थी। कहा था कि अतिरिक्त मुआवजा केंद्र सरकार को देना होगा। 22 दिसंबर 2010 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन लगाई। इसमें अतिरिक्त हर्जाना मांगा गया था। 14 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने इस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया।
साथियों बात अगर हम भोपाल दुर्घटना क्रांति को जानने 39 वर्ष पीछे जाए तो, 2 दिसंबर 1984 की रात 8:30 बजे से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की हवा जहरीली हो रही थी। रात होते ही और 3 तारीख लगते ही ये हवा जहरीली तो होती रही, लेकिन साथ ही जानलेवा भी हो गई। कारण था यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का लीक होना गैस के लीक होने की वजह थी टैंक नंबर 610में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना। इससे टैंक में दबाव बन गया और वो खुल गया। फिर इससे निकली वो गैस, जिसने हजारों की जान ले ली और लाखों को विकलांग बना दिया, जिसका दंश आज भी दिखाई पड़ता है। 2-3 दिसंबर की रात भोपाल के लिए वो रात थी जब हवा में मौत बह रही थी। फैक्ट्री के पास ही झुग्गी-बस्ती बनी थी, जहां काम की तलाश में दूर-दराज गांव से आकर लोग रह रहे थे। इन झुग्गी-बस्तियों में रह रहे कुछ लोगों को तो नींद में ही मौत आ गई। जब गैस धीरे-धीरे लोगों को घरों में घुसने लगी, तो लोग घबराकर बाहर आए, लेकिन यहां तो हालात और भी ज्यादा खराब थे। किसी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया, तो कोई हांफते-हांफते ही मर गया। इस तरह के हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था। बताते हैं कि उस समय फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बंद रहा था, जबकि उसे बिना किसी देरी के ही बजना था। जैसे-जैसे रात बीत रही थी, अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टरों को ये मालूम नहीं था कि हुआ क्या है? और इसका इलाज कैसे करना है? उस समय किसी की आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, तो किसी का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सभी को थी। एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ दो दिन में ही 50 हजार से ज्यादा लोग इलाज के लिए पहुंचे थे। जबकि, कइयों की लाशें तो सड़कों पर ही पड़ी थीं भोपाल गैस त्रासदी की गिनती सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटना में होती है। इसमें कितनों की जान गई? कितने अपंग हो गए? इस बात का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना में 3,787 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 5.74 लाख से ज्यादा लोग घायल या अपंग हुए थे। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक आंकड़े में बताया गया है कि दुर्घटना ने 15,724 लोगों की जान ले ली थी। इस हादसे का मुख्य आरोपी था वॉरेन एंडरसन, जो इस कंपनी का सीईओ था। 6 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उन्हें सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से वो अमेरिका चले गए। इसके बाद एंडरसन कभी भारत लौटकर नहीं आए। कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था। 29 सितंबर 2014 को फ्लोरिडा के वीरो बीच पर 93 साल की उम्र में एंडरसन का निधन हो गया।गैस लीक होने के 8 घंटे बाद भोपाल को जहरीली गैस के असर से मुक्त मान लिया गया था, लेकिन 1984 में हुई इस दुर्घटना से मिले जख्म 36 साल बाद भी भरे नहीं हैं।
साथियों बात अगर हम दिनांक 14 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यूरेटिव याचिका खारिज करने की करें तोसुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस क्येरिटव पिटीशन यानी उपचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें केंद्र ने भोपाल गैस त्रासदी को लेकर डाउ केमिकल्स से अतिरिक्त मुआवजे की मांग की थी। इससे गैस पीड़ितों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई जनवरी में पूरी कर ली थी। फैसला सुरक्षित रखा था और14 मार्च को यह फैसला सुनाया गया। केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से अधिक बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट हर्जाना बढ़ाने को मान जाता तो इसका लाभ भोपाल के लाखों गैस पीड़ितों को भी मिलता। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और साफ़ कर दिया कि यूनियन कार्बाइड की पैरेंट कंपनी डाउ केमिकल्स से जो वन-टाइम डील 1989 में हुई थी, उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता। इससे सैकड़ों मौतें हुई थी। हादसे के 39 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एसके कौल की संविधान पीठ ने 1989 में तय किए गए 725 करोड़ रुपये हर्जाने के अतिरिक्त 675.96 करोड़ रुपये हर्जाना दिए जाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह याचिका केंद्र सरकार ने दिसंबर 2010 में लगाई थी और अब करीब 13 साल बाद फैसला आया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में डाउ केमिकल्स ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह एक रुपया भी और देने को तैयार नहीं है।
साथियों सुप्रीम कोर्ट ने चार मई 1989 को फैसला सुनाया था कि यूनियन कार्बाइड को गैस त्रासदी के लिए 470 मिलियन डॉलर यानी उस समय 725 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। उसका आधार यह था कि हादसे में 3, हज़ार लोगों की मौत हुई है और करीब दो लाख से अधिक लोगप्रभावित हुए हैं। हालांकि,वेलफेयरकमिश्नर की 15 दिसंबर 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक भोपाल गैस त्रासदी की वजह से 5,479 लोग मारे गए हैं। 1989 में मुआवजे का आधार बना था कि बीसहजार लोग स्थायी विकलांग हुए हैं जबकि पचास हजार को मामूली चोटें आई हैं। हालांकि,यहआंकड़ा बढ़कर क्रमशः 35 हजार और 5.27 लाख हो गया। यानी चार मई 1989 को कुल पीड़ित 2.05 लाख थे, जो बढ़कर 5.74 लाख हो चुके हैं। यूनियन कार्बाइड को डाउ केमिकल्स ने खरीद लिया था और सुप्रीम कोर्ट में उसकी ओर से पैरवी वरिष्ठ वकील ने की। उन्होंने कोर्ट में कहा कि सेटलमेंट में इस केस को दोबारा खोलने का प्रावधान ही नहीं था। अब तक यूनियन कार्बाइड की हादसे के संबंध में जवाबदेही भी स्थापित नहीं हुई है। इस वजह से उस पर मुआवजे का अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जा सकता।
अतः अगर हम उपयोग पर्यावरण का अध्ययन कर उसकाविश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि टूट गईसारी उम्मीदें।गैस पीड़ितों के साथ केंद्र और राज्य सरकारको भी तगड़ा झटका सुप्रीम कोर्ट से क्यूरेटिव पिटीशन खारिज़।दुनिया में सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटनाओंं में एक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की अब सारी उम्मीदें टूट गई। मुआवजा बढ़कर नहीं मिलेगा।
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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र