Kavita: eknishthta |कविता :एकनिष्ठता
कविता: एकनिष्ठता
नदी का एक पड़ाव होता हैवो बहती है समंदर की तलाश में
बादल भी चलते हैं, बहते हैं
मौसम और जलवायु के अनुरूप
नहीं होता है बादलों का कोई पड़ाव
ना ही होता है कोई प्राप्ति-लक्ष्य
देखकर अवसरवादिता
और पाकर अनुकूलता
बरस पड़ते हैं जहां-तहां
समाज में स्त्री वर्ग प्रतीक है इन नदियों का
और पुरुष इन आवारा बादलों का
सच...!!
समाज में
स्त्रियां जितनी एकनिष्ठ हो पाई हैं
उतनी एकनिष्ठता और समर्पण का
सदैव अभाव रहा है पुरुषों में ।
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कुलदीप सिंह भाटीकालूराम जी की बावडी,
सूरसागर, जोधपुर