लघुकथा -मर्यादा |short story maryada

लघुकथा -मर्यादा | Short story maryada

लघुकथा -मर्यादा |short story maryada

"उठो! लो फोन आया है।"

"इतनी सुबह 5 बजे किसका फोन है यार?" नींद में बड़बड़ाते हुए अभिनव ने पूछा।

जवाब में सौम्या ने कहा "मेरे भैया का!"
अभिनव के हैलो कहते ही उधर से आवाज आई, "मैं सुभाष बोल रहा हूँ और आज सौम्या को ले जाने आ रहा हूँ।"

"अरे! अचानक से सौम्या की विदाई?"
हाँ, रोज-रोज तुम लोगों में जो कहा-सुनी, गाली-गलौज और मार-पीट जैसी वारदातें हो रही उसके कारण मैं कुछ दिनों के लिए सौम्या को साथ ले जाऊँगा!"
सुभाष के इतना कहते ही अभिनव ने आश्चर्यचकित होकर आवेश में आकर कहा - "भैया! पहले सौम्या ने मेरे घर वालों से ऊंची आवाज में बात करी। उन्हें बोला कि उसे उन लोगों की सेवा करने, उनके लिए खाना बनाने, कपड़े धुलने में तकलीफ होती है। सौम्या ने मेरे बीमार पेरेंट्स संग अमर्यादित व्यवहार किया तब मैंने भी गाली गलौज किया।"

अभिनव की बात बीच में ही काटते हुए सुभाष ने कहा - "अरे तुमने तो आपनी मर्यादा तोड दी है। इसीलिए तुमसे बात करना बेकार है। मैं आज आऊंगा और सौम्या को ले जाऊंगा.....!"

सुभाष को बीच में रोकते हुए अभिनव ने पूछा - "सौम्या के विदाई संबंधित निर्णय लेने का अधिकार किसे है? मुझे है या मेरे मम्मी-पापा (सौम्या के सांस ससुर) को हैं या आपको?"

जवाब में सुभाष ने कहा- "सौम्या के विदाई का निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ मेरा है, मैं उसका मालिक हूँ।"

इतना सुनते ही अभिनव ने जवाब दिया- "सौम्या अपने नाम से विपरीत मेरे परिवार संग आचरण करती है पर मेरा गाली-गलौज देना मर्यादा तोड़ना लगता है आपको! पर उसका क्या भैया, जो परसों के दिन सौम्या ने मुझपर अपने पति पर हाथ उठा दिया, क्या ये मर्यादा के अंदर है?"

इसके बाद फोन पर दोनों तरफ सन्नाटा छा गया और अभिनव ने मर्यादा जैसे एकतरफा शब्द पर गहरी सांस लेते हुए फोन रख दिया और ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया।

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अंकुर सिंह
अंकुर सिंह
हरदासीपुर, चंदवक
जौनपुर, उ. प्र.
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