Beti aur dahej by km. Soni muskan
बेटी और दहेज
बेटियां न जाने कब तक बिकती रहेंगी
दहेज के बाजार में
लोग बेटी को स्वीकार करते हैं
बेटे के इंतजार में
बेटियां करें भी तो क्या करें
वह तो मजबूर हैं
मैं दुनियाँ के लोगों से पूछती हूं
आखिर बेटियों का क्या कसूर है?..
खिली गुलाब जैसी बेटी मीठी सी मुस्कान है
घर की चहल पहल बेटी सबके घर में आई मेहमान है
वह तो उन घरानों की पहचान बनने चली
जिन घरानों से बेटियां अनजान है
दहेज है समाज का अभिशाप
इससे बढ़ रहा अधर्म और पाप
हर जन्म पर बढ़ती जा रही इसकी छाप
धन के लोभी करे इसका जाप
आखिर इसमें दोष क्या है बेचारी अबला नारी का
दोषी तो वह दहेज है जो बसा न सका घर कन्या कुंवारी का
तड़पती हैं बेटियां जीवन भर ससुराल में
सैकड़ों खुदकुशी कर रही यहां प्रत्येक साल में
आखिर कब तक वंचित रहेंगी बेटियां
अपने अधिकार से
दहेज को मिटाना होगा हमे संसार से
बहु बेटियां जल रही दिन हो या रात
हे मानव दहेज से दिला दो इनको निजात
क्योंकि हर मानव है एक बेटी का बाप
एक बेटी को उसके पिता की तरह प्यार तो दे कर देखो
उसका दर्द थोड़ा बांट कर तो देखो
दर्द तुम्हें होगा और तड़प जाती हैं बेटियां
हे मानव! क्यों तू नही समझता लड़की कोई खिलौना नहीं
उसे भी जीने का अधिकार दे
दहेज की वजह से उसकी अस्मिता मत छीन
उसे भी अपनी तरह सम्मान दे।..