Ravan ka phone (lghukatha ) by Sudhir Srivastava

 लघुकथा 
रावण का फोन

Ravan ka phone (lghukatha ) by Sudhir Srivastava


ट्रिंग.. ट्रिंग...

हैलो जी, आप कौन? मैंनें फोन रिसीव करके पूछा

मैं रावण बोल रहा हूँ। उधर से आवाज आई....।

रावण का नाम सुनकर मैं थोड़ा घबड़ाया, फिर भी हिम्मत जुटाकर पूछ लिया-जी आपको किससे बात करना है?

आपसे महोदय।रावण ने बड़ी ही शालीनता से उत्तर दिया।

मगर मैं तो आप को जानता तक नहीं।मैंनें कहा

वाह महोदय, आप मुझे जानते भी नहीं और मेरे बारे में लंबा चौड़ा लेख भी अखबारों में लिख रहे हैं। 

जी सही कहा आपने। लेकिन ये तो मेरा शौक है, जूनून है, क्योंकि मैं एक लेखक हूँ । मैं भी शान में आ गया।

   बहुत अच्छी बात है, आपका दुनियां में नाम हो। मगर मेरे बारे में जरा तहकीकात तो कर लेना था। कितने सारे आरोप लगा दिये।अच्छा ही है,इसी बहाने मुफ्त का प्रचार मिल रहा है। रावण के स्वर में मिश्री सी घुली थी।

     मगर लेखक महोदय, आपने मेरा खूब चित्रण किया।मगर आपने कभी ये भी सोचा कि जब श्रीराम ने मुझे मार डाला, तब फिर मेरा महिमामंडन क्यों?

   चलिए मैं ही बता देता हूँ। सबसे पहले तो इस भूल को सुधारिए कि श्रीराम ने मेरा वध किया, वास्तव में श्रीराम ने मुझे मोछ दिया, जिसके लिए मैंनें माँ सीता की आड़ में उन्हें लंका तक आने को विवश किया।

     अब यह आप लोगों की करतूतें हैं कि हर साल विजयपर्व मनाते हैं,मेरा पुतला जलाते हैं, श्रीराम की आड़ में मेरा महिमामंडन करते हैं। इन पुतलों को जलाकर क्या दर्शाते हैं? ढकोसला मत करिए और मेरी एक शर्त सुनिए, इस बार मेरे पुतले को आग लगाने के लिए श्रीराम सा मर्यादित व्यक्ति सामने लाइए। रावण के स्वर में व्यंग्य सा भाव था।

      मगर रावण जी तुम तो पुतले हो.....।

   इससे फर्क नहीं पड़ता लेखक जी।मैं इसलिए जलता हूँ कि श्रीराम का मान बना रहे।तुम लोग मुझे इसलिए जलाते हो कि अपने रावणरुपी चेहरे पर राम का चेहरा दिखा सको।

    बहुत अफसोस होता है महोदय जब आज हर ओर बहुरुपिए रावण खुलेआम घूम रहे हैं ,रामजी भी करें तो क्या करें? जब उनका ही आवरण ओढ़े रावण राम जी को ही भरमा रहे हैं।तब सोचो बेचारे रामजी पर क्या बीतती होगी?मगर नहीं तुम्हें क्या पड़ी है? सारी बुराई तो रावण में ही है। मरकर भी चैन से रहने नहीं दे रहे हो। काहे को मेरे भक्त बन रावण को बदनाम कर रहे हो, खुद को गुमराह कर रहे हो। कम से कम राम की मर्यादा का तो ख्याल करो, पहले अपने आप में छिपाए रावण को जलाओ। हर साल जलकर मैं यही सिखाने का प्रयास कर रहा हूँ, मगर अफसोस मेरी फौज का बेवजह विस्तार हो रहा है, मेरा नाम खराब हो रहा है।

................मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था।

तब रावण ही बोला-लेखक महोदय सच कड़ुआ लगा न? मुझे पता है तुम्हारे पास उत्तर नहीं है। जब उत्तर मिले तो इसी नंबर पर बताइये।धन्यवाद, जय श्रीराम।

कहकर रावण ने फोन काट दिया।

    मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बना सोच रहा था कि रावण का एक एक शब्द सत्य ही तो था।

👉 सुधीर श्रीवास्तव
          गोण्डा, उ.प्र.
      8115285921
© मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित

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