ऐ उम्मीद -सिद्धार्थ गोरखपुरी
ऐ उम्मीद
ऐ उम्मीद! मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूँ।
क्योंकि मैं खुश रहना ढेर सारा चाहता हूँ।तुम न होती तो भावनाएं आहत न होतीं।
किसी से कभी भी कोई चाहत न होती।
मैं खुद के लिए खुद का सहारा चाहता हूँ।
ऐ उम्मीद! मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूँ।
मैं नही चाहता फिर से मजबूर हो जाऊँ।
मैं खुद से ही बहुत ज्यादा दूर हो जाऊँ।
मेरी जिंदगी को ऐसे बदलना चाहता हूँ मैं,
कि ताउम्र मैं खुद का गुरुर हो जाऊँ।
मैं जिंदगी में दिलखुश नजारा चाहता हूँ।
ऐ उम्मीद! मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूँ।
उम्मीदों के टूटने का गम मुझसे न पूछिए।
कैसा हो जाता है जीवन मुझसे न पूछिए।
उम्मीदें खुद से की होती तो माजरा अलग होता,
उम्मीद कितनी थी खुद से,मुझसे न पूछिए।
उम्मीद से होना अब मैं बेसहारा चाहता हूँ।
ऐ उम्मीद! मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूँ।
मेरी उम्मीद खुद से है ,यही तकदीर मेरी है।
मैं खुद का हो चला हूँ अब, यही तासीर मेरी है।
नाउम्मीदी के दौर में जो उम्मीद किया खुदसे,
इसके पीछे मुस्कुराती हुई तस्वीर मेरी है।
मैं खुद के आगे बुरे वक्त को हारा चाहता हूँ।
ऐ उम्मीद! मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूँ।